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2022 Christmas Kya Hai?

Q.   क्रिसमस  क्या  है  ? Chistmas Kya hai?

क्रिसमस ईसाई धर्म मानने वालों का प्रमुख त्यौहार है  ।

Q.   क्रिसमस कब मनाया जाता है ?

पूरे विश्व में क्रिसमस 25 दिसम्बर को मनाया जाता है  ।

Q.  प्रभु  यीशू किस के बेटे थे  ?

प्रभु यीशू एक कुवांरी कन्या मरियम (Mother Mary) के बेटे थे  ।

Q. प्रभु यीशू कहाँ पैदा हुए थे ?

प्रभु यीशू वर्तमान फिलिस्तीन देश (Palestine) के बैथलहम नगर में पैदा हुए थे  ।

Q.   प्रभु यीशू कब पैदा हुए थे  ?

प्रभु यीशू लगभग 2000 वर्ष अथवा उस के कुछ पहले पैदा हुए थे  ।

      Q. क्रिसमस क्यों मनाया जाता है  ?

      क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह (Lord Jesus Christ) की याद में उन के जन्म दिवस को मनाया जाता है  ।

Q.  क्रिसमस कब से मनाया जा रहा है   ?

क्रिसमस ईसाई धर्म मानने वालों के द्वारा 25 दिसम्बर सन्  336 से अर्थात गत  1686 वर्षों से प्रति वर्ष मनाया जा रहा है  ।

Q.  25 दिसम्बर को क्रिसमस डे की शुरुआत कहाँ से हुई  ?

25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाने की शुरुआत रोमन साम्राज्य के राजा  ‘कोंस्टनटिन ‘ ने  शुरु किया था। 

Q.   क्रिसमस को Xmas क्यों कहते हैं  ?

यूनानी भाषा का  प्रथम शब्द ‘क्रिस्टो’ है जो अंग्रेजी भाषा के अक्षर  ‘X ‘  के समान दिखता है,  इसीलिए इस पर्व को ‘ Xmas ‘ भी कहा जाता है  ।

Q.  क्रिसमस पर्व कितने दिनों तक मनाया जाता है  ?

ईसाई धर्म के अनुयायी क्रिसमस का त्यौहार/ खुशियाँ 12 दिन तक अर्थात 25 दिसम्बर से 6 जनवरी तक मनाते हैं  ।

Q.  क्रिसमस टाइड किसे कहते हैं  ?

क्रिसमस त्यौहार को 12 दिन तक मनाने की अवधि को ‘क्रिसमस  टाइड ‘ के नाम से जाना जाता है  ।

Q.   क्रिसमस ट्री को किस से सजाते हैं  ?

क्रिसमस ट्री को लाल/ सफेद फूल,  फैमली फोटो,  लाइट्स,  सेव / फल , घंटियाँ,  कैंडी आदि लगाकर सजाया जाता  है   ।

आइए  क्रिसमस  के  बारे  में  विस्तार  से  जानें  ।

क्रिसमस  क्या  है  ? What is Christmas?

क्रिसमस ईसाई धर्म के अनुयायियों का वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार है।  यह त्यौहार उन के ईश्वर जिन्हें  ईसा मसीह  / यीशू  तथा क्राइस्ट  (Christ) के नाम से जाना जाता है , उन के जन्म दिवस को एक पवित्र पर्व के रूप में मनाए जाने को क्रिसमस के नाम से जाना जाता है। 

यह पर्व प्रति वर्ष पूरे विश्व के लगभग सभी देशों में 25  दिसम्बर के दिन ही मनाया जाता है  ।इस दिन पूरे विश्व भर में प्रभु यीशू के जन्म दिवस के सम्मान में सार्वजनिक अवकाश रहता है  जिस से कि सभी लोग मिलजुल कर इस पर्व को खुशी के साथ मना सकें  ।

क्रिसमस कब सै मनाया जा रहा है ? When Christmas Celebrated?

प्रभु यीशू की जन्म की तारीख का विवरण स्पष्ट रूप से तो किसी ईसाई धर्म ग्रंथ में नहीं मिलता है। ईसाई धर्म जब अस्तित्व में आया अर्थात इस के शुरु के वर्षों जब प्रभु यीशू को लोगों ने मानना शुरु किया उस समय इन का जन्म कब हुआ था इस बारे में निश्चित जानकारी नहीं थी।

परन्तु यह स्पष्टतः मालुम था कि वह पूरे  गलीलिया  में  घूम-घूम कर लोगों को उपदेश के माध्यम से समझाते थे तथा इसी क्रम में लोगों की तकलीफों  / बीमारियों तथा उन के अंदर की दुर्बलताओं को समाप्त करने का प्रयास करते थे। 

इस से प्रभु यीशू की जनता के बीच लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ी और चारों ओर दूर दूर तक लोगों को इस की जानकारी पहुंची। उन की चौतरफा बढ़ती लोकप्रियता से कुछ लोगों में प्रभु यीशू के प्रति कटुता  / ईर्ष्या होने लगी। 

उन लोगों ने प्रभु यीशू के विरोध में शासन से शिकायत करी,  उन्हें थातनाऐं दिलाईं  तथा अंततः उन्हें  सूली पर / (क्रूस) पर लटका कर मार डाला।  जब उन्हें क्रूस पर लटकाया जा रहा था उस समय भी उन के मन में कोई क्षोभ नहीं था  बल्कि अपने विरोधियों के लिए भी उन के मन में अत्यंत दया भाव था ।

उन्होंने उस समय भी यही बोला कि हे पिता परमेश्वर इन लोगों क्षमा करना क्योंकि इन के अन्दर समुचित ज्ञान की कमी है।  यीशू का Crucification शुक्रवार को हुआ था  । इसीलिए उस दिन को ‘गुड फ्राई डे ‘ (Good Friday ) मनाते हैं  ।

ऐसा माना जाता है कि Crucification  के तीसरे दिन अर्थात रविवार (Sunday) के दिन लोगों ने प्रभु यीशू को जीवित चलते  फिरते देखा।  इसीलिए Crucification  के तीसरे दिन अर्थात रविवार (Sunday) को ईस्टर  (Easter)का नाम दिया है  । 

इस से लोगों के मध्य उनके प्रति धार्मिक आस्था बहुत तेजी से बढ़ी।  और इसी के चलते लोगों ने GOOD Friday के बाद जो रविवार  (Sunday) आता है उस दिन को Easter के रूप में मनाना शुरु कर दिया।   

Easter के दिन प्रभु  यीशू/ ईसा मसीह की प्रार्थना (prayer) प्रति वर्ष करने लगे।  अर्थात उन की याद में Easter को पर्व के रूप में मनाने लगे।   पहली और दूसरी शताब्दी के दौरान प्रभु यीशू  / ईसा मसीह  (Jesus Christ) के सही जन्म दिवस को एक मत से मानने पर आपस में कुछ मत भेद (difference of views) थे।

क्योंकि कुछ लोगों का यह मत था कि वशिष्ठ  / महत्वपूर्ण पुरुषों के शहीदी दिवस मना कर उनको याद करना जन्म दिवस मनाने से अधिक उचित है।  ईसाई धर्म ग्रंथ New Testament में भी उन के जन्म दिन कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता  है  ।

25 दिसम्बर को प्रति वर्ष क्रिसमस मनाना प्रारंभ होने से पहले,  रोमन साम्राज्य में 25 दिसम्बर को अजेय सूर्य के जन्म दिवस  ( Day of Birth of Unconquered Sun) के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता था। 

क्योंकि ऐसा माना जाता था / विश्वास किया जाता था कि 25 दिसम्बर को संक्राति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायणन होता है और बड़े दिन अर्थात दिन बड़े होना प्रारम्भ हो जाते हैं  ।

रोमन साम्राज्य ही नहीं बल्कि भारत वर्ष में भी 25 दिसम्बर को इसीलिए बड़ा दिन माना जाता है / बोला जाता है  क्योंकि इस दिन से ही दिन धीरे- धीरे बड़े होने लगते हैं व रातें छीटी होना शुरु हो जाती हैं  ।

प्रभु यीशू  / ईसा मसीह  (Jesus Christ)की जन्म तारीख 25 दिसम्बर को मानने और मनाऐ जाने के पीछे एक मान्यता है जिसके अनुसार ऐसा मानते हैं कि एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नाम के एक दूत को मरियम नाम की युवती के पास भेजा, जो नाजरथ नामक स्थान जो वर्तमान इजराइल देश में है ।

ईश्वर के दूत ने मरियम को जाकर बताया कि वह एक बच्चे को जन्म देगी जो ईश्वर का पुत्र होगा । दूत का यह संदेश सुन कर मरियम चौंकी क्योंकि वह उस समय एक अविवाहित कन्या थी  । मरियम ने ईश्वर के दूत से पूछा कि यह कैसे संभव हो सकता है। दूत ने मरियम से कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा ।  

कुछ समय बाद मरियम की शादी जोसेफ नामक युवक से हो गई। ईश्वर के दूत ने जोसेफ को सपने में बताया कि मरियम जल्दी ही गर्भवती होगी और उस के होने वाली संतान स्वयं प्रभु यीशू (Jesus Christ)  होंगे ।

जब मरियम गर्भावस्था में थी,  उस समय किसी कारणवश जोसेफ और मरियम को बैथलहम ( Bethlehem ) जो वर्तमान फिलिस्तीन  (Palestine) देश में है,  वहाँ जाना पड़ा।

वहाँ पहुँचने पर उन्हे ठहरने के लिए उचित स्थान न मिलने के कारण इन को एक अस्तबल में रुकना पड़ा । उसी अस्तबल में आधी रात के बाद मरियम को एक बच्चा उत्पन्न हुआ, अर्थात प्रभु यीशू का जन्म हुआ  ।

प्रभु यीशू ( Jesus Christ) की जन्म तिथि के बारे में  Sextus  Julius Africanus  ने पहली बार सन्  221 में इस को 25 दिसम्बर बताया,  जिस को बाद में पूरे विश्व ने प्रभु यीशू  (Jesus Christ) के जन्म दिन के रूप में मान लिया गया  ।

इसके अलावा एक पुस्तक जिस का नाम ‘ Hippolytus of Rome ‘ था जो कि तीसरी शताब्दि के प्रारंभ में प्रकाशित हुई थी,  इस पुस्तक में यह उल्लेख मिलता है कि  Jesus Christ  (प्रभु यीशू  / ईसा मसीह)  का जन्म 25  दिसम्बर को हुआ था। 

इस संबंध में कुछ लोगों के यह भी तर्क मिलते हैं कि कुछ ऐतिहासिक सबूत यह बताते हैं कि क्रिसमस  डे अर्थात प्रभु यीशू का जन्म दिवस सन् 354  तथा कुछ के अनुसार  सन् 356  से मनाया जा रहा है । 

वर्तमान में विश्व भर के सभी देशों में क्रिसमस अर्थात प्रभु यीशू का जन्म दिवस  25  दिसम्बर को ही बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मिलकर मनाया जाता है  ।

प्रभु यीशू ( ईसा मसीह) का जीवन परिचय

ईसाई धर्म के मानने वालों का ऐसा मानना है कि ईसा मसीह  / यीशू (Jesus Christ) का जन्म लगभग 2000 हजार साल पहले बैथलहम ( Bethlehem) जो वर्तमान फिलिस्तीन  (Palestine) देश का एक नगर है,  वहाँ मरियम एवं यूसुफ के यहाँ एक अस्तबल में आधी रात के बाद हुआ था। 

ऐसी मान्यता है कि मरियम ईश्वरीय  /  दिव्य शक्ति से गर्भवती हो गई थी और यूसुफ  (Joseph) को सपने में एक संदेश मिला था कि वह मरियम से विवाह करे। 

जन्म के समय यीशू का नाम  ‘ऐमानुअल’ रखा गया था जिस का अर्थ होता है  – ‘मुक्ति प्रदान करने वाला ‘ ।  बाद में उन्हें  यीशू  / ईसा मसीह  (Jesus Christ) के नाम से पूरे विश्व में जाना गया  । 

बैथलहम में जहाँ प्रभु यीशू  /  ईसा मसीह का जन्म हुआ था उस स्थान पर तथा आसपास की जगह पर अब गिरजा घर  ( Church) बना दिया गया है  । यह Church  ‘ चर्च  आप नेटिविटी ‘ (Church of Nativity ) के नाम से जाना जाता है  /  प्रसिद्ध है  ।

प्रभु यीशू के माता  पिता येरुशलम से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित नाजरेथ नामक नगर में निवास करते थे,  ऐसा बाइबिल मे उल्लेख है।  

एक बार जब प्रभु यीशू की उम्र लगभग 12 वर्ष की थी, उन्होंने कई उपदेशकों के समक्ष उनकी जिज्ञासाओं  / प्रश्नों का सटीक उत्तर देकर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया था  ।

फिर वह अपने पिता के साथ गांव लौट कर पिता से बढ़ई ( Carpentor)  का काम सीखा , परन्तु इस काम में उनका  मन नहीं लगा।  अतः वह भक्ति में अधिक रुचि होने के कारण धर्म प्रचार में अधिक लीन रहने लगे  ।

ऐसा माना जाता है कि एक बार जब उन की उम्र लगभग 30 साल रही होगी, उन्होंने यहुन्ना के साथ पानी में डुबकी लगाई।  डुबकी लगाने पर उन पर पवित्र आत्मा आ गई और फिर 40 दिनों तक उपवास एवं ईश्वरीय ध्यान में लगे रहे  ।

तदुपरांत  वह लोगों को धार्मिक शिक्षा देने लगे  । इस से यीशू की लोक प्रियता जनता के बीच दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी।  इस बढ़ती लोक प्रियता से अन्य दूसरे धर्म गुरुओं तथा अन्य सम्प्रदाय के लोगों को उनसे ईर्ष्या  / जलन होने लगी  ।

इस जलन से प्रेरित होकर उन्होंने यीशू पर झूठे आरोप तथा लांछन लगा कर  तत्कालीन रोमन गवर्नर प्लातुस, जो कि बहुत क्रूर था,  उससे शिकायत लगा दी।  उस कि परिणाम यह निकला कि उस क्रूर गवर्नर ने यीशू     ( Jesus Christ) मारने की सजा देकर सूली  ( क्रूस) पर लटका / चढ़ा दिया।

जब यीशू को सूली पर चढ़ाया तो लोगों का कहना है कि यीशू ने सूली पर चढ़ते हुए उन के सभी पाप अपने ऊपर ले लिए थे क्योंकि यीशू का मानना था कि उन लोगों ने अपनी अज्ञानता के चलते ऐसा किया है  । 

प्रभू यीशू का मानना था कि जो उन पर विश्वास रखेगा तथा आपसी सौहाद्रता के लिए काम करेगा वह ईश्वर का प्रिय होगा तथा स्वर्ग में जायगा।  

क्रिसमस को किन-किन नामों से जाना जाता है  ?

इस पर्व का क्रिसमस नाम ही पूरे संसार भर में सबसे अधिक popular नाम है और सामान्यतः  अधिकांश विश्व की जनता इस पर्व को क्रिसमस नाम से ही पुकारती  / जानती है  ।परन्तु इस पर्व के कुछ अन्य नाम भी है जिनसे इस पर्व को पुकारा जाता है  –

बड़ा  दिन, 

नेटिविटी  (Nativity),

Xmas, 

Yule.

क्रिसमस पर्व के 12 दिन 

क्रिसमस पर्व  25  दिसम्बर  से प्रारंभ होकर लगातार  12 दिन तक चलता है  –

पहला दिन  (25 दिसम्बर)  – इसे क्रिसमस डे (Christmas Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से क्रिसमस  – प्रभु यीशु का जन्म उत्सव शुरु होता है  ।

दूसरा दिन  (26 दिसम्बर) – इस दिन को बॉक्सिंग डे  (Boxing  Day) तथा  सेंट स्टीफन डे  (St. Stephen  Day) के रूप में मनाते है  ।

तीसरा दिन  ( 27  दिसम्बर) –  यह दिन सेंट जौन  ( St. John the Apostle) , जो कि Jesus Christ  के मित्र व उनकी ideology  के बड़े  follower  थे  ।

चौथा  दिन  ( 28  दिसम्बर) – ऐसा मानते हैं कि इस दिन  King  Hirod ने  ईसा मसीह ( Jesus Christ) को खोजते हुए कुछ लोगों को मार डाला था । इस दिन उन लोगों की याद मे प्रार्थना सभा की जाती हैं  ।

पाँचवाँ दिन  – ( 29  दिसम्बर ) – यह दिन सेंट थामस ( St. Thomas  ) , जिनका 12 वीं सदी तत्कालीन राजा के चर्च पर अधिकार को चुनौति देने पर मार डाला था,  उन की उन की याद में प्रार्थना सभा की जातीं हैं  ।

छठा  दिन  – ( 30  दिसम्बर) – इस दिन ईसाई धर्म के लोग सेंट  इगविन आफ वर्सेस्टर  (St. Egwin of Worcester ) को याद करते हैं  ।

सातवाँ  दिन –  (31 दिसम्बर ) – यह दिन आने वाले नई साल की पहली शाम के रूप में मनाया जाता है , जिसे पहली बार पाप सिलवेस्टर  (Pope Silwester) ने New  Year  Eve के रूप में मनाया था  । 

31 दिसम्बर  की शाम को New  Year  Eve  मनाने का प्रचलन भारत वर्ष में ईसाई धर्म के अलावा अन्य सभी समुदायों में भी अत्यधिक popular है और बड़ी संख्या में लोग अपने परिवारों एवं  मित्रों के साथ होटलों  में आधी रात तक खाना –  पीना और मौज मस्ती मनाने जाते हैं  ।

आठवाँ  दिन  – ( 1 जनवरी  ) – इस दिन प्रभु यीशु की माँ मदर मरियम ( Mother Mary)  को याद किया जाता है तथा उन के लिए चर्च  में प्रार्थना सभा की जाती है। 

नवाँ  दिन  ( 2 जनवरी  ) – इस दिन चौथी शताब्दी के पहले ईसाई  – सेंट बेसिल द ग्रेट  (St. Basil the Great) तथा  सेंट ग्रेगरी निजायाजेन  ( St. Gregory Nazianzen ) को सभी लोग याद करते हें  ।

दसवाँ  दिन –  ( 3 जनवरी  ) – ऐसा माना जाता है कि प्रभु यीशु के पैदा होने के बाद इस दिन उन का नाम रखा गया था।  इस दिन गिरजा घरों में खूब सजावट की जाती हैं  तथा उन के लिए गीत गाऐ जाते हैं  ।

ग्यारहवाँ दिन – ( 4  जनवरी ) – इस दिन अमरीका  (USA) की सेंट ऐलिजाबेथ ऐन स्टेन  ( St. Elizabeth Ann Seton ) को याद किया जाता है,  वह अमरीका  (USA)  की पहली संत थीं । 

बारहवाँ दिन  – ( 5 जनवरी ) – क्रिसमस पर्व के आखरी बारहवें दिन अमरीका ( USA)   के सेंट जौन न्युमन  (St.  John  Newman ) को याद करते हैं तथा इस दिन को ऐपीफैनी  (Epiphany  ) भी कहा जाता है  ।

बारह दिन तक क्रिसमस के इस पर्व को मनाने को क्रिसमस टाइड  (  Christmas Tide ) कहा जाता है  ।

क्रिसमस मनाने की विधि  –

क्रिसमस के आने के कई दिन पहले से ही गिरजा घरों  (Churches) की साफ  सफाई व सजावट (Decoration ) का काम शुरु हो जाता है।  

ईसाई धर्म के माननै वाले सभी लोग / परिवार क्रिसमस आने से पहले अपने – अपने घरों की अच्छे से अपने घरों की साफ सफाई करते हैं  ।

साफ सफाई के बाद अलग  – अलग तरीकों से अपने- अपने घरों को सजाते हैं,  रंग बिरंगी लाइट्स लगाते हैं,  बाहर दरवाजो पर माला आदि लगाकर तथा स्टार लगाकर खूब सजाते हैं  ।

गिरजाघरों में प्रभु ईसा मसीह (Lord Jesus) की जीवन की झांकियाँ भी बड़े उत्साह व उल्लास के साथ सजाई जाती हैं।  जिन से चर्च में आने वाले सभी को प्रभु के जीवन से बहुत प्रेरणा मिलती है। 

ईसाई लोग/ परिवार क्रिसमस के त्योहार पर पहनने के लिए नये-नये कपड़े  खरीद कर लाते हैं और क्रिसमस के मौके पर पहन कर गिरजाघर में प्रार्थना सभाओं व मिलने वाले लोगों के घर दावत  / पार्टी आदि पर जाते हैं। 

24 दिसम्बर की देर शाम से ही गिरजाघरों में ईसाई परिवार पहुंचना शुरु हो जाते हैं और गिरजाघर खचाखच भर जाते है।  आधी रात के बाद अर्थात  25  दिसम्बर  शुरु होते ही जैसे ही चर्च के बैल (घन्टे ) बजते हैं सभी लोग रात को प्रभु यीशु के जन्म की खुशी में प्रार्थनाऐं ( prayers) बोलते है तथा कैरोल्स (भक्ति  गीत) गाते हैं और यह कार्यक्रम 25  दिसम्बर की सुबह तक चलता है औ 25 दिसम्बर की सुबह से ही जन्म समारोह का जश्न प्रारंभ हो जाता है  ।

चर्च में उपस्थित सभी लोग एक  दूसरे को गलै मिलते हैं,  और आपस में एक दूसरे को क्रिसमस की बधाईयाँ  /  शुभकामनाए देते हैं   केक आदि व पवित्र मदिरा का प्रसाद ग्रहण करते हैं  ।

गिरजा घरों  ( Churches) में बहुत आकर्षक तरीके से क्रिसमस  ट्री  (Christmas  Tree) को सजाया जाता है तथा उस में लाइट्स व स्टार आदि भी लगाते हैं।  क्रिसमस ट्री को मंगलदायक व Positive Energy  देने  वाला माना जाता है  ।

गिरजाघरों ( Churches)  की सजावट ऐसी लगती है कि जैसे दिवाली मनाई जा रही हो  । विश्व के बहुत से देशों में बाजारों  व सड़कों को भी बहुत सुंदर ढंग से लाइट्स आदि लगाकर बड़े उत्साह से सजाया जाता है जो देखते ही बनता है  ।

चर्च की प्रार्थना सभा समाप्त होने के बाद लोग आपस के मिलने वालों के घर परिवार के साथ जाते हैं तथा एक दूसरे के परिवारों को Invite करके बुलाते हैं और आपस में दावत करते हैं  ।

आपस में गिफ्ट एक दूसरे को देते हैं तथा अच्छे से मिलजुल कर मौज मस्ती  / पिकनिक मनाते हैं  । यह आपसी सौहाद्र का एक बड़ा प्रतीक है  ।

सभी लोग अपने घर में क्रिसमस ट्री खूब सजा कर लगाते हैं  तथा घर की छत पर दीये या लाइट्स आदि लगाते हैं जो कि खुशियों का प्रतीक है   ।

संपूर्ण विश्व में ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस के मौके पर भिन्न- भिन्न प्रकार के केक तथा तथा पुडिंग बनाते हैं और आपस में सभी मित्र परिवारों के साथ मिलकर उसको enjoy करते हैं  ।

सभी लोग क्रिसमस के ग्रीटिंग कार्ड अपने सभी मिलने वालों को अपनी क्रिसमस की शुभकामनाओं के लिए भेजते हैं  ।

भारत वर्ष में क्रिसमस के समय अन्य समुदायों के लोग (People belonging to non Christians communities  ) भी अपने ईसाई धर्म के मित्र  / परिवारों को क्रिसमस की बधाई के ग्रीटिंग कार्ड भेज कर अपनी शुभकामनाए पहुंचाते हैं तथा कुछ लोग अपने ईसाई मित्रों को क्रिसमस के मौके पर उनको दावत पर भी बुलाते हैं  ।

इस से यह स्पष्ट मालुम होता है कि  सभी communities में आपस में भारी भाई  चारा एवं सामाजिक सौहाद्र है  ।

क्रिसमस  के गाने  –

क्रिसमस उत्सव के दौरान गिरजाघरों में प्रभु ईसा मसीह की प्रार्थना सभा होती हैं व बाइबिल के पाठ के बाद प्रभु यीशु से संबंधित गाने गाऐ जाते हैं,  जिस में सभी उपस्थित लोग/ परिवार बढ़ – चढ़  कर हिस्सा लेते हैं तथा साथ-साथ गाते भी हैं और खुशियाँ मनाते हैं।

सामान्यतः यह देखा गया है निम्न गानों को ज्यादातर गिरजाघरों में तथा किसी एक जगह दावत आदि पर एकत्रित परिवार अक्सर प्रभु यीशू को याद कर इन गानों को गा कर आनन्द विभोर होते हैं   – 

अंग्रेजी कैरोल्स / गीत 

In the bleak midnight. 

I wonder as I wonder.

It comes upon a midnight clear. 

Angels we have heard on high.

O little town of Bethlehem. 

God rest yo Marry gentlemen. 

Joy is the word. 

O come all ye faithful. 

Jesus Christ the apple tree. 

Twelve days of Christmas. 

Jingle Bells.

हिन्दी   गाने 

यीशू नाम से उद्धार हमको 

झूमा नाचो आज खुशी से, आज यीशु पैदा हुआ

बैथलहम के गौशाले में

मेरा प्रभु जन्मा 

आया है यीशू आया है 

ले लेना ख्रीस्त का नाम 

हे दुनिया के राजा यीशू

आसमानी खुशी से भर दो मुझको 

हे मेरे मन तू प्रभु की आराधना कर 

मेरा मन धो देना प्रभु विनती करूँ 

जहाँ प्रादेशिक भाषाऐं भिन्न हैं वहाँ के ईसाई धर्म के लोग English व अपनी प्रादेशिक भाषा में प्रभु यीशू के गीत गाते हैं  ।

सान्ता  क्लाज 

सान्ता निकोलस जो कि चौथी शताब्दी में तुर्की के एक शहर Myra के बिशप (Bishop) थे , वह क्रिसमस के पर्व के अवसर पर हमेशा गरीबों,  विशेषकर बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे  । उसी समय से अर्थात चौथी शताब्दी से ही सांता क्लाज की परंपरा चालू हुई  तथा धीरे- धीरे सांता क्लाज क्रिसमस पर्व की एक पहचान बन गये।  इस दिन लोग एक गोल मटोल आदमी का रूप धारण कर और लाल रंग के वस्त्र पहन कर अपनी स्लेज गाड़ी में बैठ कर बच्चों को टोफियाँ व गिफ्ट देने आते हैं  । यह परम्परा आजकल विश्व के सभी देशों में देखने को मिलती है।  वर्तमान समय में बिना सांता क्लाज के क्रिसमस का उत्सव फीका – फीका व अधूरा सा लगता है क्योंकि यह क्रिसमस का एक आवश्यक अंग बन गया है। 

क्रिसमस  ट्री 

क्रिसमस ट्री का ईसाई धर्म व उस के अनुयायियों के साथ एक गहरा संबंध है  ।

क्रिसमस के पर्व पर गिरजाघरों में तथा प्रत्येक ईसाई परिवार अपने  – अपने घरों पर क्रिसमस ट्री को नाना प्रकार से सजा कर तथा उस लाइट्स आदि लगा कर लगाते हैं  ।

इस  से यह स्पष्ट होता है कि पेड़ मनुष्य के जीवन का एक आवश्यक अंग है और मनुष्य एवं जीवधारियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है  । धर्म के जीवन में आने से पहले भी यह विश्वास किया जाता था कि घर पर पेड़  या उसकी डालियाँ लगाने से बुरी आत्माऐं तथा बीमारियाँ दूर रहतीं हैं  ।

इस का वैज्ञानिक कारण यह है कि पेड़ आक्सीजन निकालते हैं और हानिकारक कार्बन डाई आक्साइड को वातावरण से सोख लेते हैं  ।

पुरानी कहानियों से यह ज्ञात होता है कि सबसे पहले क्रिसमस ट्री लातविया देश के रीगा शहर में सन्  1510 में सजाया गया था ।ऐसी ही एक और जानकारी मिलती है कि इंग्लैंड में पहली बार क्रिसमस ट्री विंडसर कैसे ( Windser Casell ) पर सन् 1841 में सजा कर लगाया गया था। 

ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस ट्री लगाने से आस पास का  / घर व बिल्डिंग का तापमान नियंत्रित ( Temprature balanced) रहता है तथा लोगों में आपसी सौहाद्र/ लगाव बेहतर होता है। 

इस से घर में positive energy  आती है और  नकारात्मक ऊर्जा ( Negative Energy) समाप्त होती है तथा वास्तु दोष दूर होते हैं  ।

क्रिसमस  का  महत्व  –

क्रिसमस शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द  ‘क्रिस्टेस मैसे ‘ से आया है।  यह दो शब्दों से मिलकर बना है  – क्राइस्टस (Christ’s )  + मास (Mass) अर्थात क्राइस्ट यानि प्रभु ईसा मसीह (Lord Jesus Christ) तथा  Mass यानि  संगत अर्थात सब एकत्र होकर मनाऐं / प्रार्थना आदि करें। इस का अर्थ यह निकलता है कि क्रिसमस मनुष्यों को आपसी भेदभाव भूल कर सौहाद्र के साथ रहना सिखाता है  ।

क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह  /यीशू (Jesus Christ)के जन्म दिवस की याद में उन के द्वारा दिये गये मानवता के संदेश का सभी के द्वारा पालन करने को प्रारित करता है। 

क्रिसमस के पर्व के रूप में समाज के लोगों के साथ अधिक मेल मिलाप स्थापित कराता है और  आपसी सद्भाव बढ़ाता है  ।

क्रिसमस आपसी मेल मिलाप को बहुत महत्व देता है।  इस से मनुष्य का जीवन सरल हो जाता है  तथा रोजमर्रा की बहुत सी बाधाऐं दूर हो जाती हैं  ।

क्रिसमस के रोचक तथ्य ( Interesting Facts and Features of Christmas)

यह त्यौहार पूरे विश्व में 25 दिसम्बर को ही मनाया जाता है तथा इसे 12 दिनों तक मनाते हैं  ।

यह एक ऐसा त्यौहार है जिस के लिए पूरे विश्व के देशों में अवकाश होता है  ।

आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में क्रिसमस 6 जनवरी को मनाया जाता है  ।

क्रिसमस प्रभु यीशू के जन्म दिवस के रूप में बहुत ही धूमधाम से पूरे विश्व में मनाया जाता है  ।

क्रिसमस का सांता क्लाज अब एक आवश्यक अंग है।  बिना इस के क्रिसमस के आनंद की कल्पना, विशेषकर बच्चों के लिए फीकी है। इस दिन सभी बच्चे सांता क्लाज को बहुत याद करते हैं क्योंकि सांता गिफ्ट देता है  ।

क्रिसमस ट्री का तरह-तरह सजाना इस पर्व में चार चांद लगाता है तथा इसे देखने मात्र से उत्सव का उल्लास बढ़ता है  ।

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